लखनऊ : यूपी भाजपा के नए मुखिया को लेकर इंतजार की घड़ियां खत्म नहीं हो रहीं। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए जरूरी कोरम पूरा हो चुका है। ऐसे में संभावना है कि यूपी पर फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद हो। वहीं यूपी में भाजपा मुखिया के चुनाव की जगह मनोनयन की संभावना प्रबल हो गई है।
प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर यूपी के एक पुराने अनुभव और हालिया तेलंगाना विवाद भी इस संभावना को बल दे रहे हैं। हालांकि कुछ लोग इस पर पहले फैसला होने की बात भी कह रहे हैं। दरअसल, यूपी के नए अध्यक्ष का फैसला 2027 को ध्यान में रखकर होना है, इसलिए पार्टी नेतृत्व व्यापक विमर्श में जुटा है। यूपी में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा आलाकमान को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
वाराणसी से लेकर प्रदेश की दूसरी सीटों पर जीत का अंतर भी घटा। वहीं दूसरी ओर विपक्ष लगातार पीडीए के एजेंडे को हवा देने में लगा है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि विपक्षी एजेंडे की धार कुंद करने के लिए भाजपा किसी पिछड़ी जाति से आने वाले चेहरे पर दांव लगा सकती है।
पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि यूपी में चुनाव की जगह मनोनयन हो सकता है। यूपी में पहले ऐसा हो चुका है। कलराज मिश्र को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अधिकृत प्रत्याशी बनाया था, मगर स्व. रामप्रकाश त्रिपाठी ने उनके सामने पर्चा दाखिल कर दिया था। मतदान की स्थिति बन गई थी। तब अटल बिहारी वाजपेयी को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
यूपी के प्रदेश अध्यक्ष पद में संघ (आरएसएस) का भी पेंच है। दिल्ली में संघ का प्रचारक वर्ग भी शुरू हो रहा है। माना जा रहा है कि यहां यूपी को लेकर चर्चा हो सकती है। जहां तक ओबीसी दावेदारों का सवाल है तो स्वतंत्रदेव सिंह व धर्मपाल सिंह के नाम हैं। केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और पूर्व मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के नाम भी दौड़ में हैं। बाबूराम निषाद और अशोक कटारिया भी रेस में शामिल बताए जा रहे हैं। कुछ मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के रिपीट होने की संभावना जता रहे हैं।
