मेरठ: समृद्ध देश का रास्ता आत्मनिर्भर गांवों से होकर गुजरता है. ये कहावत मेरठ के मोहिउद्दीनपुर गांव पर सटीक बैठती है. उत्तर प्रदेश का ये पहला गांव है जिसे बेहतरीन कूड़ा निस्तारण के लिए राज्य सरकार ने सम्मानित किया है. गांव की पंचायत ने कूड़े से कमाई का ऐसा तरीका ढूंढ निकाला है, जो पूरे उत्तर प्रदेश के लिए मिसाल बन रहा है. इस गांव के कूड़े से न सिर्फ बिजली बन रही है, बल्कि सालाना 10 लाख रुपये की कमाई भी हो रही है. इतना ही नहीं इस काम से 10 लोगों को रोजगार भी मिला है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं.
मेरठ के इस अनोखे गांव का नाम मोहिउद्दीनपुर है. गांव में करीब 1200 घर हैं. कुछ किराएदार भी रहते हैं. कुल मिलाकर गांव की आबादी 10 से 12 हजार के बीच है. गांव की खासियत ये है कि यहां की पंचायत ने एक ऐसी योजना बनाई, जिससे न सिर्फ गांव साफ रहता है, बल्कि हर दिन हर घर से कूड़ा इकट्ठा होता है. यहां स्वयं सहायता समूहों की मदद से कूड़े को अलग-अलग किया जाता है. कचरे का एक हिस्सा बिजली बनाने के लिए किसी फर्म को दिया जाता है। यानी कचरे से बिजली भी बनाई जा रही है। बाकी कचरा बेचा जाता है।
कचरे से कैसे होती है आय: ग्राम पंचायत प्रत्येक परिवार से प्रतिदिन 2 रुपये यानी 60 रुपये प्रतिमाह और दुकानदारों से प्रत्येक घर से कचरा कलेक्शन के लिए 120 रुपये लेती है। कचरा कलेक्शन के लिए गांव को 4 जोन में बांटा गया है। कुल चार गाड़ियां अलग-अलग जोन में जाकर गीला और सूखा कचरा इकट्ठा करती हैं। यह कचरा गांव के सेग्रीगेट प्वाइंट पर पहुंचता है। जहां महिलाएं इसे छांटती हैं। फिर इस कचरे को बिजली कंपनियों और अन्य कबाड़ विक्रेताओं को अच्छे दामों पर बेच दिया जाता है। ग्राम पंचायत की कचरे से होने वाली आय का यही जरिया है। पिछले डेढ़ साल में गांव से निकलने वाले कचरे से करीब 15 लाख रुपये की कमाई हुई है।
प्रदेश का पहला गांव जहां कचरा निस्तारण की व्यवस्था है: मोहिउद्दीनपुर गांव की प्रधान विमला देवी कहती हैं कि उन्होंने प्रयास किया और सभी का सहयोग मिला। यही वजह है कि आज यहां बड़ा बदलाव आया है। पंचायत सचिव मनोज शर्मा का कहना है कि गांव में सभी लोग सहयोग करते हैं। गांव में सभी स्वस्थ रहें और स्वच्छता बनी रहे, इसके लिए हर घर में दो डस्टबिन दिए गए हैं। एक में सूखा कूड़ा डाला जाता है, जबकि दूसरे में गीला कूड़ा डाला जाता है। पंचायत सचिव मनोज शर्मा ने बताया कि मोहिउद्दीनपुर गांव में चार गाड़ियां डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन करती हैं। गाड़ियां कूड़ा लेकर एक निश्चित स्थान पर पहुंचती हैं, जहां गांव की समूह की महिलाएं कूड़ा अलग करती हैं। उस कूड़े को विभिन्न कबाड़ियों के माध्यम से बेचा जाता है। इसके लिए गांव के प्रधान को प्रदेश स्तर पर सम्मान भी मिल चुका है।
जिस तरह से इस गांव में बड़े पैमाने पर कूड़ा निस्तारण की पहल की गई है, उससे यह प्रदेश का पहला ऐसा गांव बन गया है। 2022 में शुरू हुई यह पहल: ग्राम प्रधान के बेटे और प्रतिनिधि विजय नामदेव का कहना है कि कूड़े से महिलाओं की आय में इजाफा किया गया। महिलाएं खुद ही इस कूड़े को अलग करती हैं। गांव के चार जोन में मोहल्ला समितियां बनाई गई हैं। कूड़े में 17 तरह की चीजें निकलती हैं। सभी को अलग-अलग बेचा जाता है। कूड़े से बिजली बनाने वाली एक फर्म हमारा कूड़ा भी खरीदती है।
प्रधान प्रतिनिधि का कहना है कि गांव में कुल 1200 घर हैं। समूह की महिलाएं सभी से नियमित कूड़ा उठान का पैसा एकत्र करती हैं। इस कार्य से गांव के 10 लोगों को रोजगार मिला है। कूड़े का निस्तारण 2022 में शुरू किया गया था, यह प्रयास अब काफी सफल हो रहा है। गांव की सफाई में लगे वाहनों के चालक और दो सुपरवाइजर समेत कुल 10 लोगों का स्टाफ है। लोगों को प्रेरित करने से हुआ बदलाव: पूर्व में डीपीआरओ रहीं रेनू श्रीवास्तव का कहना है कि पंचायत राज विभाग और गांव के पंचायत सदस्यों व प्रधान ने लोगों को प्रेरित किया, जिसकी वजह से यह कार्य संभव हो सका। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि का कहना है कि शुरुआत में बचत नहीं हुई। लोगों को प्रेरित करना आसान नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे लोगों की समझ में आया और फिर गांव की तस्वीर भी बदल गई। आज गांव में निजी कंपनी जैसा अपना शानदार कार्यालय है। जहां प्रधान, पंचायत सचिव व अन्य कर्मचारियों के बैठने की व्यवस्था है। पिछले डेढ़ साल में करीब 15 लाख रुपये की आमदनी भी हुई है। इसका उपयोग गांव के विकास में किया जाता है।
